Natasha

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राजा की रानी

राजलक्ष्मी ने कहा, “मुझे तो तुम पा लोगे, पर मैं तुम्हें खोजकर पा जाऊँ तो गनीमत है।”


मैंने कहा, “यह भी तो ठीक नहीं है।”

उसने हँसकर कहा, “नहीं, ऐसा नहीं होगा। तुम्हें चलना ही पड़ेगा। सुना है कि 'नये गुसाईं' का वहाँ एक अलग कमरा है, मैं जाते ही उसका कुण्डा तोड़कर रख दूँगी। कोई भय नहीं, ढूँढ़ना नहीं होगा- दासी तुम्हें यों ही मिल जायेगी।”

“तो चलो।”

जिस समय हम लोग मठ में पहुँचे उस समय देवता की मधयाह्नकालीन पूजा समाप्त ही हुई थी। बिना बुलाए बिना सूचना के अकस्मात् इतने प्राणी हाजिर हो गये, किन्तु फिर भी, उन लोगों की इतनी खुशी हुई कि कह नहीं सकता। बड़े गुसाईं आश्रम में नहीं हैं, गुरुदेव से मिलने फिर नवद्वीप गये हैं, किन्तु इस बीच ही दो वैरागियों ने आकर मेरे कमरे में अड्डा जमा लिया है।

कमललता, पद्मा, लक्ष्मी, सरस्वती तथा और भी कई ने आकर हम लोगों की सादर अभ्यर्थना की। कमललता ने भरे गले से कहा, “नये गुसाईं, तुम इतनी जल्दी फिर हम लोगों को दिखाई दोगे, ऐसी आशा नहीं की थी।”

राजलक्ष्मी ने इस प्रकार बातचीत की, मानो न जाने कब का परिचय है। कहा, “कमललता जीजी, इन कई दिनों से इनकी जबान पर केवल तुम्हारी ही चर्चा थी। इससे पहले ही आना चाहते थे, पर मेरे कारण ही ऐसा न हो सका। इसमें मेरा ही दोष है।”

कमललता का मुख कुछ क्षण के लिए लाल हो गया, पद्मा हँस पड़ी और उसने ऑंखें फिरा लीं।

राजलक्ष्मी की वेश-भूषा तथा चेहरे से सभी ने उसे भद्र परिवार का समझा, केवल मेरे साथ उसका क्या सम्बन्ध है, यह निस्सन्देह कोई न जान सका। परिचय के लिए सभी उत्सुक हो रहे। राजलक्ष्मी की ऑंखों से कुछ भी नहीं छिपता। उसने कहा, “कमललता दीदी, मुझे पहिचान नहीं सकीं?”

कमललता ने सिर हिलाकर कहा, “नहीं।”

“वृन्दावन में कभी नहीं देखा?”

कमललता भी निर्बोध नहीं है, उसने परिहास समझ लिया और हँसकर कहा, “याद तो नहीं पड़ रहा बहन।”

राजलक्ष्मी ने कहा, “याद न पड़ना ही अच्छा है जीजी। मैं इसी देश की लड़की हूँ, वृन्दावन को कभी नहीं गयी।” कहकर वह हँस पड़ी। फिर लक्ष्मी, सरस्वती तथा अन्य सबके चले जाने के बाद मुझे दिखाकर कहा, “हम लोग एक ही गाँव में एक ही गुरु की पाठशाला में पढ़ते थे, दोनों में ऐसा प्रेम था जैसे भाई-बहन हों। मैं मुहल्ले के रिश्ते से 'दादा' कहकर पुकारती थी और ये मुझे बहन की तरह प्यार करते। शरीर पर कभी हाथ तक नहीं लगाया।” फिर मेरी ओर देखकर कहा, “क्यों जी, जो कुछ कह रही हूँ सच है न?”

पद्मा खुश होकर बोली, “इसी से तुम दोनों देखने में एक से लगते हो। दोनों ही ऊँचे और पतले, केवल तुम गोरी हो और नये गुसाईं साँवले।”

राजलक्ष्मी ने गम्भीर होकर कहा, “हम लोगों के ठीक एक से हुए बिना काम कैसे चल सकता पद्मा?”

“अरी मैया! तुम्हें तो मेरा नाम भी मालूम है। नये गुसाईं ने बता दिया है शायद?”

“बताया है, तभी तो तुम लोगों को देखने आयीं। मैंने कहा, “अकेले क्यों जाओगे? मुझे भी साथ ले चलो। तुमसे तो मुझे कोई डर नहीं, एक साथ देखकर कोई कलंक भी न लगायेगा और यदि लगाया भी तो हर्ज क्या है, विष नीलकण्ठ के गले में ही रह जायेगा, पेट में नहीं उतरेगा।”

मैं अब चुप न रह सका। औरतों का यह किस प्रकार का मजाक है, यह वे ही जानें। क्रोधित होकर कहा, “बताओ, लड़कियों के साथ क्यों झूठा मजाक कर रही हो?”

राजलक्ष्मी ने भले मानुस की तरह कहा, “सच्चा मजाक न हो तुम्हीं बता दो। जो कुछ जानती हूँ, सरल मन से कह रही हूँ, इससे तुम नाराज क्यों होते हो?”

उसका गाम्भीर्य देखकर गुस्से होकर भी मैं हँस पड़ा, “हाँ, सरल मन से कह रही हो! कमललता, संसार में इतनी बड़ी शैतान और वाचाल तुम्हें तलाश करने पर भी दूसरी नहीं मिलेगी। इसका कुछ न कुछ मतलब है, इसकी सब बातों पर सहज ही विश्वास न कर लेना।”

राजलक्ष्मी ने कहा, “निन्दा क्यों करते हो गुसाईं? तब तो मेरे सम्बन्ध में तुम्हारे मन में ही कोई मतलब है।”

“हाँ, है तो।”

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